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वैदिक युग से भगवान सूर्य की उपासना का उल्लेख मिलता हैं। ऋग्वेद में सूर्य को स्थावर जंगम की आत्मा कहा जाता हैं। सूर्यात्मा जगत स्तस्थुषश्च ऋग्वेद 1/115 वैदिक युग से अब तक सूर्य को जीवन स्वास्थ्य एवं शक्ति के देवता के रूप में मान्यता हैं। छान्दोग्य उपनिषद में सूर्य को ब्रह्म कहा गया हैं। आदित्यों ब्रह्मेती। पुराणों में द्वादश आदित्यों, सूर्याे की अनेक कथाएँ प्रसिद्ध हैं, जिनमें उनका स्थान व महत्व वर्णित हैं। धारणा हैं, सूर्य संबधी कथाओं को सुनकर पाप एवं दुर्गति से मुक्ति प्राप्त होती हैं। एवं मनुष्य का अभ्युत्थान होता हैं। हमारे ऋषियों ने उदय होते हुए सूर्य को ज्ञान रूप ईश्वर स्वीकारते हुए सूर्योपसना का निर्देश दिया हैं। तेत्तिरीय आरण्यकसूर्य पुराण में भागवत में उदय एवं अस्तगामी सूर्य की उपासना को कल्याणकारी बताया गया हें। प्रश्नोंपनिषद में प्रातःकालीन किरणों को अमृत वर्षी माना गया हैं (विश्वस्ययोनिम) जिसमें संपूर्ण विश्व का सृजन हुआ हैं। वैदिक पुरूष सुक्त में विराट पुरूष सुक्त में विराट पुरूष ब्रहम के नेत्रों से सूर्य की उत्पत्ती का वर्णन हैं।
सूर्य ब्रह्मण्ड की क्रेन्द्रक शक्ति हैं । यह सम्पूर्ण सृष्टि का गतिदाता हैं । जगत को प्रकाश ज्ञान, ऊजा, ऊष्मा एवं जीवन शक्ति प्रदान करने वाला व रोगाणु, कीटाणु (भूत-पिचाश आदि) का नाशक कहा गया है। वैदों एवं पुराणों के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान भी इन्ही निष्कर्षो को कहता हैं कि सूर्य मण्डल का केन्द्र व नियन्ता होने के कारण पृथ्वी सौर मण्डल का ही सदस्य हैं। अतः पृथ्वी व पृथ्वीवासी सूर्य द्वारा अवश्य प्रभावीत होते हैं । इस तथ्य को आधुनिक विज्ञान भी मानता हैं तथा ज्योतिष शास्त्र में इसी कारण इसे कालपुरूष की आत्मा एवं नवग्रहों में सम्राट कहा गया हैं । भारतीय संस्कृति में सूर्य को मनुष्य के श्रेय एवं प्रेय मार्ग का प्रवर्तक भी माना गया हैं। कहा जाता हैं कि सूर्य की उपासना त्वरित फलवती होती हैं। भगवान राम के पूर्वज सूर्यवंशी महाराज राजधर्म को सूर्य की उपासना से दीर्ध आयु प्राप्त हुई थी। श्रीकृष्ण के पुत्र सांब की सूर्याेपसना से ही कुष्ठ रोग से निवृत्ति हुई, ऐसी कथा प्रसिद्ध हैं। चाक्षुषोपनिषद के नित्य पाठ से नेत्र रोग ठीक होते हैं। हमारे यहां पंच उपासन पद्धतियों का विधान हैं, जिनमें शिव, विष्णु, गणेश सूर्य एवं शक्ति की उपासना की जाती हैं। उपासना विशेष के कारण उपासकों के पांच संप्रदाय प्रसिद्ध हैं। शैव, वैष्णव, गणपत्य एवं शक्ति। वैसे भारतीय संस्कृति एवं धर्म के अनुयायी धार्मिक सामथ्र्य भाव से सभी की पूजा अर्चना करते हैं, किन्तु सूर्य के विशेष उपासक और संप्रदाय के लोग आज भी उड़ीसा में अधिक है। सृष्टि के महत्वपूर्ण आधार हैं सूर्य देवता। सूर्य की किरणों को आत्मसात करने से शरीर और मन स्फूर्तिवान होता है। नियमित सूर्य को अर्घ्य देने से हमारी नेतृत्व क्षमता में वृद्धि होती है। बल, तेज, पराक्रम, यश एवं उत्साह बढ़ता है।
समस्त जगत के जीवनदाता, ज्योति एवं उष्णता के परम पुंज तथा समस्त ज्ञान के स्वरूप सर्वोपकारी देव श्री सूर्य नारायण के महत्त्व से सभी भली भांति परिचित हें.. देवी अदिति के गर्भ से जिनकी उत्पति है, भगवान विराट के नेत्रों से जिनकी अभिव्यक्ति है, जो, श्रद्धा भाव से अर्घ्य प्रस्तुत करने मात्र से ही उपासक की समस्त पीडाओं को दूर कर, सफलता के मार्ग को प्रशस्त करने वाले हैं, ऎसे सूर्यदेव निश्चय ही देवरूप में पूजे जाने के अधिकारी हैं. हिन्दु संस्कृ्ति में श्री गणेश, शिव, शक्ति, विष्णु और सूर्य----ये पाँचों देव आदि देव भगवान के ही 5 प्रमुख पूज्य रूप हैं. जो सूर्य ग्रह रूप में आकाश में दृ्ष्ट है, वह तो मात्र एक स्थूल रूप है. वास्तविकता में सूर्य का विस्तार तो अनन्त है. इस ब्राह्मंड में अनगिनत आकाश गंगाएं हैं तथा प्रत्येक में असँख्य सूर्य प्रकाशमान हैं. अत: यह जानना ही लगभग असंभव है कि सम्पूर्ण ब्राह्मंड कितने सूर्यों से जगमगा रहा है. शास्त्रानुसार तो यह सभी उस अज्ञात महासूर्य का भौतिक जगत में स्थूलरूप से विस्तार है. प्राणदायिनी उर्जा एवं प्रकाश का एकमात्र स्त्रोत होने से सूर्य का नवग्रहों में भी सर्वोपरि स्थान है. निश्चय ही भारतीय संस्कृ्ति नें सूर्य के इस सर्वलोकोपकारी स्वरूप को बहुत पहले ही जान लिया था. इसीलिए भारतीय संस्कृ्ति में सूर्य की उपासना पर पर्याप्त बल दिया गया है. सूर्योपासना के लौकिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार के अनेकानेक लाभ हैं. निष्काम भाव से दिन रात निरन्तर अपने कार्य में रत सूर्य असीमित विसर्ग (त्याग) की प्रतिमूर्ति हैं. सूर्य द्वारा ग्रीष्म काल में पृ्थ्वी के जिस रस को खींचा जाता है, उसे ही चतुर्मास (चौमासे) में हजारों गुणा करके पृ्थ्वी को सिंचित कर दिया जाता है. ऎसे सूर्य देव सबको इतना ही समर्थ बनाएं, यही सूर्योपासना का मूल तत्व है. भारतीय संस्कृ्ति भी तो इसी भावना से ओतप्रोत रही है. आज भौतिकता की दौड नें भले ही हमारी जीवन शैली को अत्यधिक प्रभावित कर दिया हो, पर सच तो यह है कि इस परिस्थितिजन्य दुष्प्रभावों से बचने के लिए सूर्योपासना और भी आवश्यक हो गई है तथा समय के साथ इसका महत्व और भी बढ गया है. सही मायनों में तो बाल्याकाल से ही हर मनुष्य को सूर्योपासना का महत्व समझाया जाना चाहिए. यदि बचपन से ही बालक सूर्य नमस्कार करे तथा सूर्य को अर्घ्य दे, तो निश्चित ही बालक बलवान, तेजस्वी एवं यशस्वी बनेगा तथा उसे जीवन में कभी भी नेत्र और ह्रदय रोग आदि से पीडित होने का कोई भय नहीं रहेगा.
अत: प्रात:काल सूर्य को अर्घ्य(जल) प्रदान करना निश्चित ही लाभकारी है. यह क्रिया वैज्ञानिक कारणों से भी अत्यंत श्रेष्ठ है, क्यों कि प्रात: उदित होते हुए सूर्य में लाभदायक किरणें होती हैं, जो नेत्रों के लिए स्वास्थय्वर्द्धक हैं. सूर्य को जल देने का सही तरीका यह है कि जल पात्र को ह्रदय की ऊँचाई तक ले जाकर फिर जल गिराना चाहिए और नेत्रों को पात्र के दोनों किनारों पर बनने वाले सूर्य के प्रतिबिम्ब पर स्थिर रखना चाहिए; साथ ही यदि सभव हो तो निम्नांकित मन्त्र का भी उच्चारण करते रहें तो समझिए सोने पे सुहागा. एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजो राशे: जगत्पते.
सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नमः व्यक्ति चलते-चलते, दवा लेते, खाली समय में कभी भी करता रहे लाभ मिलता है । तंत्रोक्त मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का ग्यारह हजार जाप पूरा करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं । नित्य एक माला पौराणिक मंत्र का पाठ करने से यश प्राप्त होता हैं । रोग शांत होते हंै । सूर्य गायत्री मंत्र के पाठ जाप या 24000 मंत्र के पुनश्चरण से आत्मशुद्धि, आत्म-सम्मान, मन की शांति होती हैं । आने वाली विपत्ति टलती हैं, शरीर में नये रोग जन्म लेने से थम जाते हैं । रोग आगे फैलते नहीं, कष्ट शरीर का कम होने लगता हैं। अध्र्य मंत्र से अध्र्य देने पर यश-कीर्ति, पद-प्रतिष्ठा पदोन्नति होती हैं । नित्य स्नान के बाद एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें थोड़ा सा कुमकुम मिलाकर सूर्य की ओर पूर्व दिशा में देखकर दोनों हाथों में तांबे का वह लोटा लेकर मस्तक तक ऊपर करके सूर्य को देखकर अर्ध्य जल चढाना चाहिये । सूर्य की कोई भी पूजा- आराधना उगते हुए सूर्य के समय में बहुत लाभदायक सिद्ध होती हैं ।.
सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नमः व्यक्ति चलते-चलते, दवा लेते, खाली समय में कभी भी करता रहे लाभ मिलता है । तंत्रोक्त मंत्रों में से किसी भी एक मंत्र का ग्यारह हजार जाप पूरा करने से सूर्यदेव प्रसन्न होते हैं । नित्य एक माला पौराणिक मंत्र का पाठ करने से यश प्राप्त होता हैं । रोग शांत होते हंै । सूर्य गायत्री मंत्र के पाठ जाप या 24000 मंत्र के पुनश्चरण से आत्मशुद्धि, आत्म-सम्मान, मन की शांति होती हैं । आने वाली विपत्ति टलती हैं, शरीर में नये रोग जन्म लेने से थम जाते हैं । रोग आगे फैलते नहीं, कष्ट शरीर का कम होने लगता हैं। अध्र्य मंत्र से अध्र्य देने पर यश-कीर्ति, पद-प्रतिष्ठा पदोन्नति होती हैं । नित्य स्नान के बाद एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें थोड़ा सा कुमकुम मिलाकर सूर्य की ओर पूर्व दिशा में देखकर दोनों हाथों में तांबे का वह लोटा लेकर मस्तक तक ऊपर करके सूर्य को देखकर अर्ध्य जल चढाना चाहिये । सूर्य की कोई भी पूजा- आराधना उगते हुए सूर्य के समय में बहुत लाभदायक सिद्ध होती हैं ।
जन्मांक में सूर्य द्वारा जातक की आरोग्यता, राज्य, पद, जीवन-शक्ति, कर्म, अधिकार, महत्वाकांक्षा, सामर्थय, वैभव, यश, स्पष्टता, उग्रता, उत्तेजना, सिर, उदर, अस्ति, एवं शरीर रचना, नैत्र, सिर, पिता तथा आत्म ज्ञान आदि का विचार किया जाता हैं । जातक का दिन में जन्म सूर्य द्वारा पिता का तथा रात्रि में जन्म, सूर्य द्वारा चाचा एवं दाए नैत्र का कारक कहा गया हैं। यात्रा प्रभाव व उपासना आदि के विचार में भी सूर्य की भूमिका महत्वपूर्ण हैं । कुछ ज्योतिर्विद सूर्य को उग्र व क्रुर होने के कारण पापग्रह भी मानते हैं । किन्तु कालपुरूष की आत्मा एवं सर्वग्रहों में प्रधान होने के कारण ऐसा मानना तर्कसंगत नहीं हैं । सर्वविदित हैं कि सूर्य की अपने पुत्र शनि से नहीं बनती । इसका भाग्योदय वर्ष 22 हैं ।
आदित्य: प्रथमं नाम द्वितीयं तु विभाकर: तृ्तीयं भास्कर: प्रोक्तं चतुर्थं च प्रभाकर:!! पंचम च सहस्त्रांशु षष्ठं चैव त्रिलोचन: सप्तमं हरिदश्वश्च अष्टमं च विभावसु:!! नवमं दिनकृ्त प्रोक्तं दशमं द्वादशात्मक: एकादशं त्रयोमूर्तीद्वादशं सूर्य एव च!! द्वादशैतानि नामानि प्रात:काले पठेन्नर: दु:स्वप्ननाशनं सद्य: सर्वसिद्धि: प्रजायते!! आयुरारोग्यमैश्वर्य पुत्र-पौत्र प्रवर्धनम ऎहिकामुष्मिकादीनि लभन्ते नात्र संशय:!!
प्रात:कल नियमित सूर्य नमस्कार करने से शरीर हष्ट पुष्ट रहता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृ्द्धि होती है.
सूर्य प्रकाश(धूप) में बैठकर कनेर, दुपहरिया, देवदारू, मैनसिल, केसर और छोटी इलायची मिश्रित जल से नियमित स्नान से पक्षाघात, क्षय(टीबी), पोलियो, ह्रदय विकार, हड्डियों की कमजोरी आदि रोगों में शर्तिया विशेष लाभ प्राप्त होता है.
सृष्टि के महत्वपूर्ण आधार हैं सूर्य देवता। सूर्य की किरणों को आत्मसात करने से शरीर और मन स्फूर्तिवान होता है। नियमित सूर्य को अर्घ्य देने से हमारी नेतृत्व क्षमता में वृद्धि होती है। बल, तेज, पराक्रम, यश एवं उत्साह बढ़ता है।
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