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जब भी ग्रहों की बात करतें हैं तो अक्सर उनके मैत्री चक्र का भी जिक्र होता है.सामान्यतः ग्रह को अपने मित्र की राशि में उच्च व शत्रु की राशि में नीच होना चाहिए.किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है. ग्रह का शत्रु राशि में होना उसे अपना नैसर्गिक गुण ,अपना स्वाभाविक रूप दिखाने से रोकता है वहीँ मित्र राशि का ग्रह अपने स्वभावानुसार सरलता से अपने गुण प्रदर्शित कर लेता है.हर ग्रह के अपने अच्छे व बुरे दोनों प्रकार के लक्षण होते हैं,गुण अवगुण दोनों होते हैं.मंगल का गुण युद्ध के मैदान में देखने को मिलता है,अवगुण हत्या लूटपाट के रूप में सामने आता है.चंद्रमा का गुण कला ,संगीत ,स्वाभाव की सौम्यता के रूप में दिखता है,तो अवगुण मानसिक संताप,डर के तौर पर देखा जाता है.शुक्र का गुण स्टाइल ,सफाई,हुनर के रूप में सामने आता है तो अवगुण छिछोरापन दिखाने वाला होता है.गुरु का गुण ज्ञान की भूख दिलाता है तो अवगुण अपने सीमित ज्ञान को भी दूसरों से श्रेष्ट दिखाने का भुलावा देना है.इसी प्रकार ग्रहों के अपने अपने गुण अवगुण देखने को मिलते हैं!शुक्र की दोनों राशियों में गुरु को शत्रु राशि स्थित माना जाता है,किन्तु वहीँ दूसरी और अपने शत्रु की मीन राशि में आते ही दैत्यगुरु शुक्र उच्च का प्रभाव देने लगते हैं.
कारण यह है की गुरु के घर में शुक्र अपनी शक्तियों को गुरु के शुभ प्रभाव से मिला देतें है तो स्वयं किसी भी प्रकार के भटकाव से बचकर अपना गुण बेहतरीन रूप से प्रदर्शित करने वाला बन जातें है. जातक कम बोलने वाला व सभ्य होता है. वहीँ अपने परम मित्र बुध की कन्या राशि में इस शुक्र पर कोई लगाम नहीं रह पाती,अततः वह अपने अवगुणों को प्रदर्शित करने वाला माना जाता है. भोग विलास ,दिखावे का यहाँ चरम दिखाई पड़ता है.परम मित्र होकर भी मंगल चंद्रमा के घर को अपनी नीचता द्वारा बिगाड़ने हेतु जाने जाते हैं वहीँ शत्रु शनि के घर पर उच्च के हो जाते हैं.वास्तव में मंगल शूरता के कारक हैं.भला ठन्डे, सौम्य व स्वाभाविक शांत चंद्रमा के घर में उन्हें अपनी शूरता दिखाने का मौका कहाँ मिलने वाला है . अतः अपने शत्रु की राशि मकर में आते ही ये अपने सारा हुनर दिखाने वाले बन जाते हैं. मकर में ये शारीरिक दक्षता की संभावनाएं दिखाते हैं तो कर्क में आकर अपनी उग्रता .शूरता को थामने हेतु मादक पदार्थों या अन्य किसी प्रकार का अवगुण देने वाले बन जाते हैं.मकर में आदेश देने वाले होते हैं व कर्क में किसी का भी आदेश न मानने वाले.भावनाओं ,व कला के कारक चन्द्र को वृष के रूप में जब मोहक अदाएं व स्वयं को नफासत से प्रदर्शित करने वाले शुक्र (शत्रु ही सही) का साथ मिल जाता है तो गन्धर्व जैसे योगों का निर्माण होता है.चन्द्र के गुण यहाँ खुल कर सामने आने लगते हैं .उनकी कला को विस्तार प्राप्त होने लगता है.
अपनी राशि में चन्द्र प्रबल भावनात्मक असर देने वाले हैं,तो मंगल की नकारात्मक राशि में मित्र के घर होते हुए भी अपनी नैसर्गिक सौम्यता त्यागकर कुटिल चालें चलने,व भावनाओं को अन्दर ही अन्दर दबाने के लिए कोशिश करने वाले ग्रह के रूप में देखे जाते हैं.पात्र -कुपात्र के चक्र से दूर रहकर गुरु का काम सबको शिक्षा,ज्ञान व संयम का दान देना है.शांत रहकर गुरु कर्क राशि में अपना ये दायित्व बेहतर तरीके से निभाते देखे जाते हैं. मांगने पर उचित सलाह देते हैं वहीँ शनि,,जिनका काम चीजों को पृथक करना है, न्याय-अन्याय की बात करते हुए हालत का विचार करना है,दूध का दूध पानी का पानी करना है .... की मकर राशि में आते ही स्वयं को असहाय पाते हैं.क्योंकि वो भेद भाव नहीं कर सकते.चीजों को ,जातकों को अलग अलग नहीं कर सकते गुरु होने के नाते अतः ऐसी अवस्था में ये नीच मान लिए जाते हैं तो क्या आश्चर्य है?यहाँ ये बिना मांगे सलाहें देते फिरते हैं.अपने ज्ञान के प्रदर्शन के लिए हर जगह अपनी टांग फंसाते दिखते हैं.भाषा के स्तर पर दूसरों का ह्रदय दुखाते हैं .इसी प्रकार सूर्य के सर्वाधिक निकट के ग्रह बुध महाराज ,सबसे जल्दी अस्त व बार बार वक्री होते हैं.अततः उच्च के रूप में इन्हें स्वयं की कन्या राशि ही भाती है.अपनी बार बार बदलती अवस्था के कारण ये खुद के घर में स्वयं को अधिक सहज पाते हैं. बोलने की क्षमताओं के कारण शत्रु गुरु की मीन राशि पर आते ही इनकी बोली को ज्ञान का छौंका लग जाता है तो फिर भला क्यों ये किसी की सुनने वाले हैं अतः नेतागिरी या बेधड़क बोलने के कामों में ,किसी को नीचा दिखाने वाली बातों में इनका कोई सानी नहीं रहता.किन्तु अपनी उच्च राशि में ये सारगर्भित बातें ,सटीक बातें करने वाले बन जाते है! इसी प्रकार अन्य ग्रहों का उदाहरण भी समझा जा सकता हैं!! अततः जहाँ तक समझ में आता है ,ज्योतिषियों को शत्रु राशि में बैठे ग्रह व नीच के ग्रहों में अंतर कर ही कुंडली का कथन करना चाहिए.दोनों स्थितियां भिन्न हैं और परिणाम भी भिन्न ही देती हैं!
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