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यूँ तो संतान योग जातक की जन्मकुंडली में जैसा भी विद्यमान हो उस अनुसार प्राप्त हो ही जाता है फ़िर भी कुछ प्रयासों से मनचाही संतान प्राप्त की जा सकती है. यानि प्रयत्न पूर्वक कर्म करने से बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है. विवाहोपरांत दंपति को संतान प्राप्ति की प्रबल उत्कंठा होती है. आज जब लडकियां भी पढ लिखकर काफ़ी उन्नति कर रही हैं तो भी अधिकांश दंपतियों की दबे छुपे मन में पुत्र संतान ही प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं! योग्य पुत्र प्राप्त करने के इच्छुक दंपति अगर निम्न नियमों का पालन करें तो अवश्य ही उत्तम पुत्र प्राप्त होगा. स्त्री को हमेशा पुरूष के बायें तरफ़ सोना चाहिये. कुछ देर बांयी करवट लेटने से दायां स्वर और दाहिनी करवट लेटने से बांया स्वर चालू हो जाता है. इस स्थिति में जब पुरूष का दांया स्वर चलने लगे और स्त्री का बांया स्वर चलने लगे तब संभोग करना चाहिये. इस स्थिति में अगर गर्भादान हो गया तो अवश्य ही पुत्र उत्पन्न होगा. स्वर की जांच के लिये नथुनों पर अंगुली रखकर ज्ञात किया जा सकता है!
योग्य कन्या संतान की प्राप्ति के लिये स्त्री को हमेशा पुरूष के दाहिनी और सोना चाहिये. इस स्थिति मे स्त्री का दाहिना स्वर चलने लगेगा और स्त्री के बायीं तरफ़ लेटे पुरूष का बांया स्वर चलने लगेगा. इस स्थिति में अगर गर्भादान होता है तो निश्चित ही सुयोग्य और गुणवती कन्या संतान प्राप्त होगी!
शास्त्रसम्मत है कि सुंदर, दीर्घायु और स्वस्थ संतान के लिए गडांत, ग्रहण, सूर्योदय एवम सूर्यास्त्काल, निधन नक्षत्र, रिक्ता तिथि, दिवाकाल, भद्रा, पर्वकाल, अमावस्या, श्राद्ध के दिन, गंड तिथि, गंड नक्षत्र तथा आंठवें चंद्रमा का त्याग करके शुभ मुहुर्त में संभोग करना चाहिये! मासिक धर्म शुरू होने के प्रथम चार दिवसों में संभोग से पुरूष रुग्णता को प्राप्त होता है. पांचवी रात्रि में संभोग से कन्या, छठी रात्रि में पुत्र, सातवी रात्रि में बंध्या पुत्री, आठवीं रात्रि के संभोग से ऐश्वर्यशाली पुत्र, नवी रात्रि में ऐश्वर्यशालिनी पुत्री, दसवीं रात्रि के संभोग से अति श्रेष्ठ पुत्र, ग्यारहवीं रात्रि के संभोग से सुंदर पर संदिग्ध आचरण वाली कन्या, बारहवीं रात्रि से श्रेष्ठ और गुणवान पुत्र, तेरहवी रात्रि में चिंतावर्धक कन्या एवम चौदहवीं रात्रि के संभोग से सदगुणी और बलवान पुत्र की प्राप्ति होती है. पंद्रहवीं रात्रि के संभोग से लक्ष्मी स्वरूपा पुत्री और सोलहवीं रात्रि के संभोग से गर्भाधान होने पर सर्वज्ञ पुत्र संतान की प्राप्ति होती है. इसके बाद की अक्सर गर्भ नहीं ठहरता! पुरातन काल में दंपति आज की तरह हर रात्रि को नही मिलते थे उनका सहवास सिर्फ़ संतान प्राप्ति के उद्देष्य के लिये होता था. शुभ दिन और शुभ मुहुर्त के संभोग से वो योग्य संतान प्राप्त कर लेते थे. वर्तमान काल में युवा पीढी की उदंडता, अनुशासनहीनता, लडाई झगडे की प्रवॄति वाले होने के लिये वास्तव में उनके माता पिता ही जिम्मेदार हैं क्योंकि वे किसी भी दिन, किसी भी समय संभोग करके गर्भ धारण करके संतान पैदा कर लेते हैं!
कश्यप ऋषि और उनकी स्त्री इसके ज्वलंत उदाहरण हैं एक दिन महर्षि संध्या समय नदी तट पर संध्या हेतु जा रहे थे कि उसी समय उनकी पत्नि ने कामाभिभूत होकर महर्षि को सहवास के लिये निमंत्रण देकर उन्हें ऐसा करने के लिये बाध्य कर दिया. इस संध्या काल के गर्भाधान की वजह से ही उनकी स्त्री ने हिरणकश्यप जैसी राक्षस संतान पैदा की. उनकी द्वितीय पत्नि धार्मिक नियमों का पालन करते हुये केवल रात्रि के शुभ मुहुर्तों में ही संभोग रत होते थे अत: उनकी गर्भ से सारी देवता संताने ही पैदा हुई! गर्भाधान के समय गोचर में पति/पत्नी के केंद्र एवम त्रिकोण मे शुभ ग्रह हों, तीसरे छठे ग्यारहवें घरों में पाप ग्रह हों, लग्न पर मंगल गुरू इत्यादि शुभ कारक ग्रहों की दॄष्टि हो और मासिक धर्म से सम रात्रि हो, उस समय सात्विक विचार पूर्वक योग्य पुत्र की कामना से यदि रति की जाये तो निश्चित ही योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है. इस समय में पुरूष का दायां एवम स्त्री का बांया स्वर ही चलना चाहिये, यह अत्यंत अनुभूत और अचूक उपाय है जो खाली नही जाता. कारण यह है कि पुरुष का जब दाहिना स्वर चलता है तब उसका दाहिना अंडकोशः अधिक मात्रा में शुक्राणुओं का विसर्जन करता है जिससे कि अधिक मात्रा में पुल्लिग शुक्राणु निकलते हैं. अत: पुत्र ही उत्पन्न होता है!
यदि पति पत्नि संतान प्राप्ति के इच्छुक ना हों और सहवास करना ही चाहें तो मासिक धर्म के अठारहवें दिन से पुन: मासिक धर्म आने तक के समय में सहवास कर सकते हैं, इस काल में गर्भादान की संभावना नही के बराबर होती है! तीन चार मास का गर्भ हो जाने के पश्चात दंपति को सहवास नही करना चाहिये. अगर इसके बाद भी संभोग रत होते हैं तो भावी संतान अपंग और रोगी पैदा होने का खतरा बना रहता है. इस काल के बाद माता को पवित्र और सुख शांति के साथ देव आराधन और वीरोचित साहित्य के पठन पाठन में मन लगाना चाहिये. इसका गर्भस्थ शिशु पर अत्यंत प्रभावकारी असर पदता है! यदि संतान मे सूर्य बाधा कारक बन रहा हो तो हरिवंश पुराण का श्रवण करें, राहु बाधक हो तो क्न्यादान से, केतु बाधक हो तो गोदान से, शनि या अमंगल बाधक बन रहे हों तो रूद्राभिषेक से संतान प्राप्ति में आने वाली बाधायें दूर की जा सकती हैं!!!!
बुध .नाम के ही अनुसार बुध वाणी और बुद्धि का प्रतिनिधि ग्रह माना गया है.चीजों को बैलेंस करने का कार्य बुध ही करता है.रोगों का इलाज भी बुध ही के पास होता है.बुध की तासीर गर्म होती है.यह सूर्य के सर्वाधिक नजदीक का ग्रह है,अततः सूर्य के प्रभाव में सबसे ज्यादा रहता है व जाहिर तौर पर सूर्य की गर्मी को सबसे ज्यादा सहन करता है! शरीर में श्वांस का कारक बुध ही है.गुरु शरीर में प्राण डालता है,किन्तु उन प्राणों को चलाने वाली वायु का कारक बुध ही है.प्राण को जीवित रखना बुध ही का कार्य है.सूर्य की रौशनी में पौधों द्वारा अपना भोजन बनाने की प्रक्रिया( जिसे की विज्ञान की भाषा में फोटोसिन्थेसिस कहते हैं )के साथ साथ हरे रंग के पौधे आक्सीजन पैदा करने का कार्य भी करते हैं.इस दौरान वो बुध ग्रह से प्राप्त रश्मियों को अपने पत्तों द्वारा सोख कर तने की सहायता से पौधे के अन्दर भेजते हैं.हरे रंग के पत्ते पौधे की त्वचा हैं.इसी प्रकार शरीर में त्वचा को बुध से जोड़ा जाता है.त्वचा से सम्बंधित सभी समस्याएं बुध से जुडी मानी जाती हैं.ध्यान दें की रात के समय पेड़ों के नीचे सोने से मना करने का अर्थ यही होता है की रात में पौधों को प्राण वायु बनाने हेतु बुध की सहायता प्राप्त नहीं होती बुध की मिथुन राशि पर सूर्य के आते ही गर्मी अपने चरम पर पहुँच जाती है,व सूर्य के चंद्रमा की जलीय राशि पर आते ही भरपूर बरसात होने लगती है.(ऋतुओं का संवाहक सूर्य ही है.)अपनी राशि पर प्रवेश कर सूर्य धरती में समा रहे जल को अपनी प्रचंड गर्मी से खराब कर उसमे विकृतियाँ पैदा करने लगता है.(इन दिनों पानी से होने वाली बीमारियाँ बढ जाती हैं.)व सूर्य के फिर से बुध की कन्या राशि पर आते आते त्वचा से सम्बंधित रोगों में बेतहाशा वृधि हो जाती है! बुध प्राण वायु का संवाहक है.इसी कारण अस्पतालों में आपरेशन आदि के समय डाक्टरों द्वारा हरी चादरों ,हरे मास्क आदि का उपयोग किया जाता है.यहाँ वे जाने अनजाने बुध के प्रभाव को ही बढाने का प्रयत्न करते हैं.क्योंकि उनका मुख्य मकसद रोगी के प्राणों की रक्षा करना ही होता है.साथ ही बुध चीजों को बैलेंस करने का कार्य करता है. किसी भी शल्य क्रिया के दौरान मुख्य रूप से दो ग्रह एक्टिव होतें हैं.मंगल व शनि आपरेशन में यदि मंगल अधिक प्रभावी हुआ तो चिकित्सक जल्दबाजी में गलत निर्णय ले सकता है और यदि शनि प्रभावी हुआ तो आपरेशन में जरुरत से ज्यादा समय लग सकता है,दोनों कारणों से रोगी की जान के लाले पड़ सकते हैं ,इस अवस्था को नियंत्रित करने के लिए हरे रंग की वस्तुओं यानि बुध के प्रभाव कार्य कर रहा होता है. लाल रंग में यदि काला मिला दिया जाय तो हरा रंग ही बनता है.बरसात के मौसम में जब हरियाली अपने चरम पर आ जाती है तो बुध पूर्ण प्रभावी होकर त्वचा से सम्बंधित रोगों को फ़ैलाने लगता है! बुध जब भी वक्री होता है अर्थात धरती के अधिक नजदीक होता है तो उस दौरान पैदा होने वाले जातकों को सांस से सम्बंधित रोग जैसे अस्थमा आदि होने की संभावनाएं बहुत ज्यादा होती हैं.त्वचा के रोग लोगों को अधिक होते हैं.बरसात के मौसम में जब चारों तरफ हरियाली ही हरियाली होती है तो अस्थमा के रोगियों की समस्या बढ़ जाती है.जिस दिन भी दोपहर में बादल छा जाते हैं तो बुध से आने वाली रश्मियाँ पूरी तरह से धरती पर नहीं पहुँच पाती व पौधों द्वारा प्राणवायु(ऑक्सीजन) के निर्माण में कमी आ जाती है.परिणामस्वरूप रक्तचाप के मरीजों व अस्थमा के मरीजों की समस्या बढ़ जाती है! पौधों में सबसे ज्यादा पारा तुलसी के पौधे में पाया जाता है.इसी कारण बुध के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए तुलसी की सेवा की जाती है.तुलसी के पौधे के संपर्क में आप जितना ज्यादा रहते हैं अस्थमा की समस्या में उतनी राहत पाते हैं.तुलसी की चाय पीने से सांस पर किसी भी प्रकार का अवरोध पैदा कर रहा कफ़ बलगम आदि तुरंत समाप्त हो जाता है.तुलसी का लेप सभी प्रकार की त्वचा की बीमारियों पर राहत पहुँचाने का काम करता है.इसलिए आमतौर पर आपने बुध की शांति हेतु पंडित जी को तुलसी पर जल चढाने की सलाह देते सुना होगा.वाणी पर नियंत्रण होने के कारण जब भी बुध दूषित होता है तो तोतलापन ,या किसी विशेष शब्द के उच्चारण में असुविधा जातक में देखी जा सकती है.जिस ग्रह को सबसे कम महत्ता प्राप्त है वो ही वास्तव में कितना महत्वपूर्ण है! शास्त्र बुध के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए हरी वस्तुओं का दान व पन्ना धारण करने की सलाह देता है.बुआ की सेवा करना भी बहुत लाभकारी माना गया है. जानवरों को हरा चारा ,चिड़ियों को हरे मूंग की दाल आदि देने का चलन काफी पुराना है!! आप अपनी कुंडली को अपने विश्वस्त और योग्य ज्योतिषी को दिखा कर ही बुध के उपाय या दान करें!!
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